नन्हा स्पर्श
रात के 10:30 बजे होंगे ,मैं किताब पढ़ते पढ़ते नींद में, बिस्तर में निढाल हो गई थी। शायद गहरी नींद में ही चली गई थी । तभी नन्हीं उंगलियों का स्पर्श पाकर कुछ सुध आई। देखा तो पाया कि किसी ने मुझे चादर ओढ़ा दिया है।
" अरे क्या हुआ बेटी, मैं सो गई थी क्या? " " मेरी किताब कहां है? " मैंने एक साथ प्रश्नों की झड़ी लगा दी। " मैंने किताब को उसकी पॉलिथीन में रख दिया है, आप सो जाओ।" मेरी 7 साल की नन्हीं बेटी ने उत्तर दिया।
मैंने प्यार से उसे गले लगाया और उसे भी सोने के लिए अपने पास लेटा लिया। तब तक मेरी भी नींद खुल गई थी तो लाइट बंद कर मैं ठीक से बिस्तर पर लेट गई।
स्मृतियां फिर एक बार पीछे की ओर चल पड़ी है। बात उन दिनों की है जब मेरी बेटी काफी छोटी थी और मैं अपने विद्यालय में 11वीं कक्षा में फिजिक्स लेती थी। दिनभर स्कूल, फिर शाम को खाने आदि के बाद रात में मैं पढ़ाने के लिए अध्ययन करती थी । अक्सर पढ़ते-पढ़ते नींद आ जाती थी कई बार। मेरी पुस्तक काफी भारी और बड़ी होती थी। उस दिन भी शायद थकान काफी थी तो पुस्तक हाथ में लिए लिए ही नींद आ गई पर मेरी नन्ही बेटी जाग रही थी जो कि अधिकतर सो जाया करती थी।
लाइट बंद करके उसे सुलाने के बाद मैंने कोशिश की पर मुझे नींद नहीं आई। उसकी नन्ही समझदारी बड़ी पुलकित करने वाली थी, साथ ही आश्चर्य की दुनिया में ले जाने वाली। आखिर क्या आया उस नन्हे से दिल में कि न जाने उसने इतनी सी उम्र में मां की थकान को महसूस किया और साथ ही साथ समझदारी का परिचय देकर सामान को व्यवस्थित रख दिया?
पर उसके नन्हे हाथों से वह चादर ओढ़ाना जैसे जीवन भर की याद हो गई। वैसे तो मां का वात्सल्य अपने बच्चे के लिए सदा ही समान होता है पर आज इस नन्ही समझदारी को देखकर दिल गदगद हो गया था।
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